नंदनँदन बृषभानु किसोरी -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग काफी


नंदनँदन बृषभानु किसोरी, मोहन राधा खेलत होरी।
श्रीबृंदावन अतिहिं उजागर, बरन बरन नव दंपति भोरी।।
एकनि कर है अगर कुमकुमा, एकनि कर केसरि लै घोरी।
एक अबै सौं भाव दिखावति, नाचति तरुनि बाल वृध भोरी।।
स्यामा-उतहिं सकल ब्रजबनिता, इतहिं स्याम रस रूप लहौ री।
कंचन की पिचकारी छूटति, छिरकत ज्यौ सचु पावै गोरी।।
अतिहिं ग्वाल दधि गोरस साने, गारी देत कहौ न करौ री।
करत दुहाई नंदराइ की, लै जु गयौ कल बल छल जोरी।।
झुंडनि जोरि रही चंद्रावलि, गोकुल मैं कछु खेल मच्यौ री।
'सूरदास' प्रभु फगुआ दीजै, चिरजीवौ राधा बर जोरी।।2894।।

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