नँदसुत सहज बुलाइ पठाऊँ -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग रामकली


नँदसुत सहज बुलाइ पठाऊँ।
स्याम राम अति सुंदर कहियत, देखन काज मँगाऊँ।।
जैहै कौन प्रेम करि त्यावै, भेद न जानै कोइ।
महर महरि सौ हित करि ल्यावै, महा चतुर जौ जोइ।।
इहिं अंतर अकूर बुलायौ, अति आतुर महराज।
'सूर' चल्यौ मन सोच बढ़ाये, कौन है ऐसौ काज।।2927।।

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