धोखैं ही धोखैं बहुत बह्यौ -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग बिलावल





धोखैं ही धोखैं बहुत बह्यौ।
मैं जान्‍यौ सब संग चलैगौ, जहँ कौ तहाँ रह्यौ।
तीरथ गवन कियौ नहिं कबहूँ, चलतहिं चलत दह्यौ।
सूरदास सठ तब हरि सुमिर्यौ, जब कफ कंठ गह्यौ।।327।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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