धोखैं ही धोखैं डहकायौ -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग कल्‍यान




धोखैं ही धोखैं डहकायौ।
समुझि न परी, बिषय-रस गीध्‍यौ, हरि-हीरा घर माँझ गँवायौ।
ज्‍यौं कुरंग जल देखि अवनि कौ, प्‍यास न गई चहूँ दिसि धायौ।
जनम-जनम बहु करम किए हैं, तिनमैं आपुन आपु बँधायौ।
ज्‍यौं सुक सेमर सेव आस लगि, निसि-बासर हठि चित्त लगायौ।
रीतौं पर्यौ जबै फल चाख्‍यौ, उड़ि गयौ तूल, ताँवरौ आयौ।
ज्‍यौं कपि डोरि बाँधि बाजीगर, कन-कन कौं चौहटैं नचायौ।
सूरदास भगवंत-भजन बिनु, काल-ब्‍याल पै आपु डसायौ।।326।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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