धृतराष्ट्र द्वारा कौरव-पांडव शक्ति का तुलनात्मक वर्णन

महाभारत उद्योग पर्व में यानसंधि पर्व के अंतर्गत 60वें अध्याय में 'धृतराष्ट्र द्वारा कौरव-पांडव शक्ति का तुलनात्मक वर्णन' है, जो इस प्रकार है[1]-

धृतराष्‍ट्र द्वारा दुर्योधन को समझाना

वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! संजय की बात सुनकर प्रज्ञाचक्षु राजा धृतराष्‍ट्र ने उसके वचन के गुण-दोष का विवेचन आरम्भ किया। अपने पुत्रों की विजय चाहने वाले विद्वान एवं बुद्धिमान राजा धृतराष्‍ट्र ने बुद्धितत्त्व के द्वारा उक्त वचन के सूक्ष्‍म-से-सूक्ष्‍म गुण-दोषों की यथावत समीक्षा करके दोनों पक्षों की प्रबलता एवं निर्बलता का यथा‍र्थ रूप से निश्‍चय कर लिया। तत्पश्‍चात जब उन्हें यह विश्‍वास हो गया कि गुण-दोष की दृष्टि से श्रीकृष्‍ण का कथन सर्वोत्कृष्‍ट है, तब उन बुद्धिमान नरेश ने पुन: कौरवों और पाण्‍डवों की शक्ति पर विचार करना आरम्भ किया। पाण्‍डवों में दैवी शक्ति, मानवी शक्ति तथा तेज- इन सभी दृष्टियों से उत्कृष्‍टता प्रतीत हुई और कौरव-पक्ष की शक्ति अल्प जान पड़ी, इस प्रकार विचार करके धृतराष्‍ट्र ने दुर्योधन से कहा-। ‘वत्स दुर्योधन! मेरी यह चिन्ता कभी दूर नहीं होती है, क्योंकि तुम्हारा पक्ष दुर्बल है। मैं यह बात अनुमान से नहीं कहता हूँ; प्रत्यक्ष देख रहा हूँ; अत: इसी को सत्य मानता हूँ। ‘तुम ऐसे कार्य के लिये दुराग्रह करते हो, जो समस्त भूमण्‍डल का विनाश करने वाला है। यह अधर्मकारक तो है ही, अपयश की भी वृद्धि करने वाला है; इसके सिवा यह अत्यन्त क्रूरतापूर्ण कर्म है। तात! तुम्हारा पाण्‍डवों के साथ युद्ध छेड़ना मुझे किसी भी तरह अच्छा नहीं लग रहा है। ‘संसार के समस्त प्राणी अपने पुत्रों पर अत्यन्त स्नेह करते हैं तथा अपनी शक्ति के अनुसार इनका प्रिय एवं हितसाधन करते हैं।[1]

धृतराष्‍ट्र के द्वारा कौरव-पाण्‍डवों की सामर्थ्य का तुलनात्मक वर्णन

धृतराष्‍ट्र कहते हैं- तात! ‘इसी प्रकार प्राय: यह भी देखता हूँ कि साधु पुरुष उपकारी मनुष्‍यों के उपकार का बदला चुकाने के लिये उनका बारंबार महान प्रिय कार्य करना चाहते हैं। ‘कौरव-पाण्‍डवों के इस भयंकर संग्राम में अग्निदेव भी खाण्डव वन में अर्जुन के किये हुए उपकार को याद करके उनकी सहायता अवश्‍य करेंगे। ‘इसके सिवा पाण्‍डवों का जन्म अनेक देवताओं से हुआ है, इसलिये वे धर्म आदि देवता युधिष्ठिर आदि के बुलाने पर उनकी सहायता के लिये अवश्‍य पधारेंगे। ‘भीष्‍म, द्रोण और कृप आदि के भय से पाण्‍डवों की रक्षा चाहते हुए देवता लोग भीष्‍म आदि पर वज्र के समान भयंकर क्रोध करेंगे, ऐसा मेरा विश्‍वास है। ‘नरश्रेष्‍ठ पाण्‍डव अस्त्रविद्या के पारंगत और पराक्रमी तो हैं ही, देवताओं का सहयोग भी प्राप्त कर चुके है; अत: कोई मनुष्‍य उनकी ओर आंख उठाकर देख भी नहीं सकता।[1] ‘जिसके पास उत्तम एवं दुर्धर्ष दिव्य गांडीव धनुष है, वरुण के दिये हुए बाणों से भरे दो दिव्य अक्षय तूणीर हैं, जिसका दिव्य वानर-ध्वज कहीं भी अटकता नहीं है- धूम की भाँति अप्रितहत गति से सर्वत्र जा सकता है, समुद्रपर्यन्त समूची पृथ्वी पर जिसके रथ की समानता करने वाला दूसरा कोई रथ नहीं है, जिसके रथ का घर्घर शब्द सब लोगों को महान मेघों की गर्जना के समान सुनायी पड़ता है तथा वज्र की गड़गड़ाहट के समान शत्रु सैनिकों के मन में भय का संचार कर देता है।

जिसे सब लोग अलौकिक पराक्रमी मानते हैं, समस्त राजा भी जिसे युद्ध में देवताओं तक को पराजित करने में समर्थ समझते हैं, जो पलक मारते-मारते पांच सौ बाणों को हाथ में लेता, छोड़ता और दूरस्थ लक्ष्‍यों को भी मार गिराता हैं; किंतु यह सब करते समय कोई भी जिसे देख नहीं पाता है; जिसके विषय में भीष्‍म, द्रोण, कृपाचार्य, अश्वत्थामा, मद्रराज शल्य तथा तटस्थ मनुष्‍य भी ऐसा कहते हैं‍ कि युद्ध के लिये खडे़ हुए शत्रुदमन नरश्रेष्‍ठ अर्जुन को पराजित करना अमानुषिक शक्ति रखने वाले भूमिपालों के लिये भी असम्भव है। जो एक वेग से पांच सौ बाण चलाता है तथा जो बाहुबल में कार्तवीर्य अर्जुन के समान है; इन्द्र और विष्‍णु के समान पराक्रमी उस महाधनुर्धर पाण्‍डुनन्दन अर्जुन को मैं इस महासमर में शत्रु सेनाओं का संहार करता हुआ-सा देख रहा हूँ। ‘भारत! मैं दिन-रात यही सब सोचते-सोचते नींद नहीं ले पाता हूँ। कुरुवंशियों में कैसे शान्ति बनी रहे? इस चिन्ता से मेरा सारा सुख छिन गया है। कौरवों के लिये यह महान विनाश का अवसर उपस्थित हुआ है। तात! यदि इस कलह का अन्त करने के लिये संधि के सिवा और कोई उपाय नहीं है तो मुझे सदा संधि की ही बात अच्छी लगती है; कुन्तीपुत्रों के साथ युद्ध छेड़ना ठीक नहीं है। मैं सदा पाण्‍डवों को कौरवों से अधिक शक्तिशाली मानता हूँ।[2]

टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 60 श्लोक 1-11
  2. महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 60 श्लोक 12-23

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सेनोद्योग पर्व
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संजययान पर्व
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प्रजागर पर्व
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सनत्सुजात पर्व
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यानसंधि पर्व
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भगवद्यान पर्व
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सैन्यनिर्याणपर्व
पांडवपक्ष के सेनापति का चुनाव | पांडव सेना का कुरुक्षेत्र में प्रवेश | कुरुक्षेत्र में पांडव सेना का पड़ाव तथा शिविर निर्माण | दुर्योधन द्वारा सेना को सुसज्जित होने और शिविर निर्माण का आदेश | कृष्ण का युधिष्ठिर से युद्ध को ही कर्तव्य बताना | युधिष्ठिर का संताप और अर्जुन द्वारा कृष्ण के वचनों का समर्थन | दुर्योधन द्वारा सेनाओं का विभाजन और सेनापतियों का अभिषेक | दुर्योधन द्वारा भीष्म का सेनापति पद पर अभिषेक | युधिष्ठिर द्वारा अपने सेनापतियों का अभिषेक | बलराम का पांडव शिविर में आगमन और तीर्थयात्रा के लिए प्रस्थान | रुक्मी का सहायता हेतु पांडवों और कौरवों के पास आगमन | धृतराष्ट्र और संजय का संवाद

उलूकदूतागमनपर्व
दुर्योधन का उलूक को दूत बनाकर पांडवों के पास भेजना | पांडव शिविर में उलूक द्वारा दुर्योधन का संदेश सुनाना | पांडवों की ओर से दुर्योधन को उसके संदेश का उत्तर | पंडवों का संदेश लेकर उलूक का लौटना | धृष्टद्युम्न द्वारा योद्धाओं की नियुक्ति

रथातिरथसंख्यानपर्व
भीष्म द्वारा कौरव पक्ष के रथियों और अतिरथियों का परिचय | कौरव पक्ष के रथियों का परिचय | कौरव पक्ष के रथी, महारथी और अतिरथियों का वर्णन | कर्ण और भीष्म का रोषपूर्वक संवाद | भीष्म द्वारा पांडव पक्ष के रथी और उनकी महिमा का वर्णन | पांडव पक्ष के महारथियों का वर्णन तथा विराट और द्रुपद की प्रशंसा | पांडव पक्ष के रथी, महारथी एवं अतिरथी आदि का वर्णन | भीष्म का शिखण्डी और पांडवों का वध न करने का कथन

अम्बोपाख्यानपर्व
भीष्म द्वारा काशीराज की कन्याओं का अपहरण | अम्बा का भीष्म से शाल्वराज के प्रति अनुराग प्रकट करना | अम्बा का शाल्व द्वारा परित्याग | अम्बा और शैखावत्य संवाद | होत्रवाहन तथा अकृतव्रण का आगमन और उनका अम्बा से वार्तालाप | अकृतव्रण और परशुराम का अम्बा से वार्तालाप | अम्बा और परशुराम का संवाद तथा अकृतव्रण की सलाह | परशुराम और भीष्म का रोषपूर्ण वार्तालाप | परशुराम और भीष्म का युद्ध हेतु कुरुक्षेत्र में उतरना | परशुराम के साथ भीष्म द्वारा युद्ध प्रारम्भ करना | परशुराम और भीष्म का घोर युद्ध | भीष्म और परशुराम का युद्ध | भीष्म को प्रस्वापनास्त्र की प्राप्ति | भीष्म तथा परशुराम द्वारा शक्ति और ब्रह्मास्त्र का प्रयोग | भीष्म और परशुराम के युद्ध की समाप्ति | अम्बा की कठोर तपस्या | अम्बा को महादेव से वरप्राप्ति तथा उसका चिता में प्रवेश | अम्बा का द्रुपद का यहाँ जन्म और शिखण्डी नामकरण | शिखण्डी का विवाह और दशार्णराज का कोप | हिरण्यवर्मा के आक्रमण से द्रुपद का घबराना | द्रुपद द्वारा नगररक्षा की व्यवस्था और देवाराधन | शिखण्डिनी का वनगमन और स्थूणाकर्ण यक्ष से प्रार्थना | शिखण्डी को पुरुषत्व की प्राप्ति | स्थूणाकर्ण को कुबेर का शाप | भीष्म का शिखण्डी को न मारने का निश्चय | भीष्म आदि द्वारा अपनी-अपनी शक्ति का वर्णन | अर्जुन द्वारा अपने सहायकों और युधिष्ठिर की शक्ति का परिचय देना | कौरव सेना का रण के लिए प्रस्थान | पांडव सेना का युद्ध के लिए प्रस्थान

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