धन-जन कविता सुंदरी -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

अभिलाषा

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राग देश - तीन ताल


 
धन-जन-कविता सुंदरी, चहौं न मैं जगदीस।
बनी रहै प्रति जन्म में भक्ति अहैतुकि, ईस॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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