धन्‍य कान्‍ह धनि धनि ब्रज आए-सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

Prev.png
राग गौरी


धन्‍य कान्‍ह धति धनि ब्रज आए।
आजु सबनि धरि कै यह खातौ, धनि तुम हमहिं बचाए।।
यह ऐसौ तुम अतिहिं तनक से कैसैं भुजनि फिरायौ।
पलकहिं माँझ सबनि कैं देखत, मारयौ, धरनि गिरायौ।।
अब लौं हम तुमकौं नहिं जान्‍यौ, तुमहिं जगत-प्रतिपालक।
सूरदास-प्रभु असुर-निकंदन, ब्रज-जन के दुख-घालक।।1388।।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः