धन्य हरि नैन, धनि रूप राधा -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग गुंड मलार


धन्य हरि नैन, धनि रूप राधा।
धन्य वह मुकुर, धनि धन्य प्रतिबिंब मुख, धन्य दंपति रहत वेष आधा।।
धन्य सिंगार, धनि धन्य निरखनि स्याम, धन्य छवि लूट लूटत मुरारी।
'सूर' प्रभु चतुर चतुरा नवल नागरी, रहे प्रतिबिंब पर नैन धारी।।2197।।

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