धन्य नंद जसुदा के नंदन -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग बिहागरौ


धन्य नंद जसुदा के नंदन।
धनि सीखंड-पीड सिर लटकनि, धनि कुंडल, धनि मृगमद चंदन।।
धनि राधिका, धन्यि सुंदरता, धनि मोहन की जोरी।
ज्यौं धन मध्य दामिनी की छबि, यह उपमा कहौं थोरी।।
धनि मंडली जुरी गोपिनि को, ता बिच नंद-कुमार।
राधा-सम सब गोप-कुमारी, क्रीड़तिं रास-बिहार।।
षट-दस सहस घोष-सुकुमारी, षट-दस सहस गुपाल।
काहू सौं कछु अंतर नाहीं, करत परस्प र ख्याल।।
धनि ब्रज बास, आस यह पूरन, कैसे होति हमारी।
सूर अमर ललना-गन अंबर, बिथकीं लोक बिसारी।।1047।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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