धन्य जसोदा भाग तिहारौ, जिनि ऐसो सुत जायौ।
जाकैं दरस-परस सुख तन-मन, कुल कौ तिमिर नसायौ।
बिप्र-सुजन-चारन-बंदीजन, सकल नंद गृह आए।
नूतन सुभग दूब-हरदी-दधि, हरषित सीस बँधाए।
गर्ग निरूपि कह्यौ सब लच्छन, अबिगत हैं अबिनासी।
सूरदास प्रभु के गुन सुनि-सुनि, आनंदे ब्रजवासी।।87।।