द्वै मैं एकौ तौ न भई -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

Prev.png
राग मलार



द्वै मैं एकौ तौ न भई।
ना हरि भज्‍यौ, न गृह सुख पायौ, वृथा बिहाइ गई।
ठनी हुती और कछु मन मैं, औरै आनि ठई।
अबिगत-गति कछु समुझि परत नहिं, जो कुछ करत दई।
सुत सनेहि-तिय सकल कुटुँब मिलि, निसि-दिन होत खई।
पद-नख-नंद चकोर बिमुख मन, खात अँगार मई।
विषय-बिकार-दवानल उपजी, मोह-बयारि लई।
भ्रमत-भ्रमत बहुतै दुख पायौ, अजहुँ न टेंव गई।
होत कहा अबके पछिताऐं, बहुत बेर बितई।
सूरदास सेये न कृपानिधि, जो सुख सकल भई।।299।।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः