द्रौपदी हरि सों टेरि कही -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग धनाश्री




द्रौपदी हरि सों टेरि कही।
तुम जिनि सहौ स्‍याम सुंदर बर, जेती मैं जु सही।
तुम पति पाँच, पाँच पति हमरे, तुम सौं कहा रही ?
भीषम, करन, द्रोन, देखत, दुस्‍सासन बाह गही।
पूरे चीर अंत नहिं पायौ, दुरमति हारि लही।
सूरदास प्रभु द्रुपद-सुता की, हरि जू लाज ठही।।258।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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