देखौ माई इहिं कुबिजा हम जारी।
किरचक चंदन दै विरमाए, हम तन करी निनारी।।
कत हम संखचूड़ तै राखी, दावानलहिं उबारी।
एक संदेसौ कहियौ ऊधौ, प्रान तजतिं ब्रजनारी।।
कत हम सिरजी चतुर विधाता, कत गढ़ि छोलि सँवारी।
'सूरदास' प्रभु जल के सुत ज्यों, क्यौ बिरहिनि तन गारी।।3640।।