देखि मोहि प्रियतमा राधिका -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

श्रीराधा माधव लीला माधुरी

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राग सारंग - तीन ताल


देखि मोहि प्रियतमा राधिका कितनी सुखी भ‌ई एहि काल।
आँखिन ओझल होत अदरसन तें कैसी होगी बेहाल॥
सहि पावैगी कैसे राधा हृदय-बिदारक सो उर-सूल।’
’हाय’ पुकार रो उठे मोहन सहसा गये सकल सुख भूल॥
देखि बिषाद भर्‌यौ प्रियतम-मुख काँपि उठ्यौ राधा-तन धीर।
उठी हृदय तें हूक बिंधि गयौ मानों बिषम बिष-बुझ्यौ तीर॥
निज सुख-हेतु स्याम सनमुख मैं आ‌ई क्यों अपराधिनि आज ?
जो सुख स्याम-दुःख कौ कारन ता पर परी क्यों नहीं गाज ?
नहीं आवती जो सन्मुख मैं होती नहिं आनन्द-बिभोर।
मेरी भावी दुख-संका तें तो न दुखी होते चित-चोर॥
मेरे दुःख-दुखी वे प्रियतम मेरे सुख तें सुखी अमान।
तिन कूँ नित्य दुखी मैं करती निज-सुख-‌इच्छा में बेभान॥
कबहुँ न मैं देखूँ अब तिन कूँ, देख जु पाऊँ रहूँ सचेत।
सुख-लहरी आवै न बदन पर प्रगट न होवै सुख-संकेत॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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