दूरि ही ते देखति दसा मैं वा वियोगिनि की -पद्माकर

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दूरि ही ते देखति दसा मैं वा वियोगिनि की -पद्माकर


दूरि ही ते देखति दसा मैं वा वियोगिनि की,
आई दौरि भाजि ह्यां न लाज मढि आवैगी।
कहै पदमाकर सुनौ हो घनस्याम वाहि,
चेतत कहूँ जो एक आह कढि आवैगी।
सर सरितान को न सूखत लगैगी बेर,
एती कछू जुलसिन ज्वाला बढि आवैगी।
बाकी बिरहागि की कहौं मैं कहा बात,
मेरे गातहिं छुवौ तो तुम्हें ताप चढि आवैगी।

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