दूरि ही ते देखति दसा मैं वा वियोगिनि की,
आई दौरि भाजि ह्यां न लाज मढि आवैगी।
कहै पदमाकर सुनौ हो घनस्याम वाहि,
चेतत कहूँ जो एक आह कढि आवैगी।
सर सरितान को न सूखत लगैगी बेर,
एती कछू जुलसिन ज्वाला बढि आवैगी।
बाकी बिरहागि की कहौं मैं कहा बात,
मेरे गातहिं छुवौ तो तुम्हें ताप चढि आवैगी।