दुर्मति दैत्य महाबलने आ -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

बाल-माधुरी की झाँकियाँ

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राग वागेश्री - ताल कहरवा


दुर्मति दैत्य महाबलने आ, नन्द-भवन में किया प्रवेश।
हाथ लिये पञ्चाङ्ग, रामनामी ओढ़े, शुचि ब्राह्मण-वेश॥
झूल रहा यजोपवीत कंधे पर, भस्म त्रिपुण्ड्र सुभाल।
गले भव्य रुद्राक्ष-हार शुभ, पाण्डित्योचित मन्थर चाल॥
आदर किया सभीने नन्द-महलमें उसको पण्डित जान।
अर्घ्यासन मधुपर्क दानकर बैठाया सादर, सहमान॥
परिचय दे ज्योतिषका, उसने पूछा शिशुका जन्म-सु-काल।
बना कुण्डली, हो गम्भीर, लगा बतलाने फल तत्काल॥
कहा-’मूलमें जन्मा है यह, कर देगा कुलको निर्मूल।
गोकुलको पहुँचा पताल, यह सबके उर बेधेगा शूल॥
होली करके गोत्रमात्रकी, कर देगा सब वंश-विनाश।
अतः इसी में है मङ्गल, कर दिया जाय इसका ही नाश॥
फेंका जाय घोर वनमें, या गाड़ा जाय भूमिको खोद।
बालक नहीं, काल है सबका, अशुभ अमङ्गल विगत-विनोद’॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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