दिन दस लेहि गोबिंद गाइ -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग कान्‍हरौ



            

दिन दस लेहि गोबिंद गाइ।
छिन न चिंतत चरन-अंदुज, बादि जीवन जाइ।
दूरि जब लौं जरा रोगऽरु चलति इंद्री भाइ।
आपुनौ कल्‍यान करि लै, मानुषी तन पाइ।
रूप जोबन सकल मिथ्‍या, देखि जनि गरबाइ।
ऐसै ही अभिमान-आलस, काल ग्रसिहै वाइ।
कूप खनि कत जाइ रे नर, जरत भवन बुझाइ।
सूर हरि कौ भजन करि लै, जनम-मरन नसाइ।।315।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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