दिन कछू औरहु बहुरि इहाँ ऐबौ।
बलि हौ गुपाल मिलि जाहि संगहि सग, इतनी कहि बात सुख बहुत पैवी।।
महाराज भए सुनि सबनि आनँद भयौ, तौ वचन एक हमहि दीजै।
देखि वह नाउँ वन खरिक जमुना पुलिन, नंदनंदन नाथ कृपा कीजै।।
बिरह व्याकुल भई इहाँ गोपी सकल, कीरति न छाँड़ै गोपाल न्यारे।
ते क्यौ जिए ‘सूर’ स्याम ! दरसन बिना, जिनहिं तुम प्रान तै अधिक प्यारे।।