दान मानि घर कौं सब जाहु।
लेखौ मैं कहुँ-कहुँ जानत हौं, तुम समुझै सब होत निबाहु।।
पछिलौ देहु निबाहि आजु सब, पुनि दीजौ जब जानौ कालि।
अब मैं कहत भली हौं तुमसौ, जौ तुम मौकौं मानी ग्वालि।।
बृंदाबन तुम आवत डरपति, मैं दैहौं तुमकौं पहुँचाइ।
सुनहु सूर त्रिभुवन बस ताकै, सो प्रभु जुवतिनि बस आइ।।1594।।