दवा तैं जरत ब्रज-जन उबारे।
पैठि जल गए गहि उरग आने नाथि,
प्रगट फन फननि- प्रति चरन धारे।।
देखि मुनि-लोक, सुर-लोक, सिव-लोक के,
नंद-जसुमति हेत-बस मुरारी।
जहाँ तहँ करत अस्तुति मुखनि देव-नर,
धन्य-जै-शब्द तिहुँ भुवन भारी।।
सुख कियौ जमुन-तट एक दिन-रैनि बसि,
प्रातहीं ब्रज गई गोप नारी।
सूर प्रभु स्याम-बलराम नँद-धाम गए,
मातु-पितु घोष-जननि सुखकारी।।602।।