थौरे जीवन भयौ तन भारौ।
कियौ न संत-समागम कबहूँ, लियौ न नाम तुम्हारौ।
अति उनमत्त-मोह-माया बस, नहिं कछु बात बिचारौ।
करत उपाव न पूछत काहू, गनत न खाटौ-खारौ।
इंद्री-स्वाद-बिबस निसि-बासर, आप अपुनपौ हारौ।
जल औंड़े मैं चहुँ दिसि पैरयौ, पाऊँ कुल्हारौ मारौ।
बाँधी मोट पसारि त्रिबिध गुन, नहिं कहुँ बीच उतारौ।
देख्यौ सूर बिचार सीस परी, तब तुम सरन पुकारौ।।152।।