मीराँबाई की पदावली
विरह निवेदन राग प्रभाती
थे तो पलक उघाड़ो दीनानाथ, |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ साऊ थे
- ↑ लागे
- ↑ साऊ
- ↑ ऊपर
- ↑ इसके आगे कहीं ये पंक्तियां भी आती हैं:--
गुरु रैदास मिले मोहिं पूरे, धुर से कलम भिड़ी ।
सतगुरु सैन दई जब आके, जोत में जोत रली । - ↑ पलक उघाड़ो = आँखें खोलो, मेरी ओर देखो। हाजिर नाज़िर = आँखों के सामने। कदकी = कभी से, देर से। साजनियाँ = स्वजन, सगे। दुसमण = दुश्मन, बैरी। सबने = सभी को। कड़ली लगूँ = अप्रिय जान पड़ती हूँ। डिगी = चल कर। हुई अड़ी = रुक गई। सौ.. घड़ी = सौके सामने वा मुकाबले एक पसेरी।
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