तोहिं बोलै री मधु-केसि-मथन।
जमुनकूल अनुकूल तृपारत चकित बिलोकत सकल पथन।।
न करु विलंब भूषनकृत दूषन चिहुरविहुर नाना कर न गथन।
समुद कुमुद कमल मलिन दुति पसित भए सब नाथ नथन।।
कुंजनि सेज सजे एकाकी रमत सखी बीयौ न सथन।
कुसुम बास सखि आस तुम्हारी हरि जू रचि धरे अपने हथन।।
जुग जु जात पल श्री युपाल कै कुटिल तम करी चढ़े है रथन।
'सूरदास' अति गात कामरत बासर गत भयौ तुम्हरै कथन।। 95 ।।