तेरौ तब तिहिं दिन -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग बिलावल




तेरौ तब तिहिं दिन, को हितू हो हरि बिन।
सुधि करि कै कृपिन, तिहिं चित आनि।
जब अति दुख सहि, कठिन करम गहि,
राख्‍यौ हो जठर महिं स्‍त्रोनित सौं सानि।
जहाँ न काह कौ गम, दूसह दारुन तम,
सकल विधि विषम, खल मल खानि।
समुझि धौं जिय महिं, को जन सकत नहिं,
बुधि बल कुल तिहिं, जायौ काकी कानि।
वैसी आपदा ते राख्‍यौ, तौष्‍यौ, पोष्‍यो, जिय दयौ,
मुख-नासिका-नयन-स्‍त्रौन-पद-पानि।
सुनि कृतघन, निसि-दिन कौ सखा आपन,
अब जौ बिसान्‍यौ करि विनु पहिचानि।
अजहुँ सँग रहत, प्रथम लाज गहत,
संतत सुभ चहत, प्रिय जन जानि।
सूर सो सुहृद मानि, ईस्‍वर अंतर जानि,
सुनि सठ झूठौ हठ-कपट न ठानि।।77।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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