तृणबिन्दु | एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- तृणबिन्दु (बहुविकल्पी) |
तृणबिन्दु हिन्दू पौराणिक ग्रंथ महाभारत के अनुसार काम्यकवन में स्थित एक सरोवर था।[1] जब समस्त पांडव द्वैतवन में निवास कर रहे थे, तब वन के पशुओं द्वारा आग्रह किये जाने पर पांडव काम्यकवन में स्थित तृणबिन्दु सरोवर को चले गए।
- महाभारत युद्ध से पूर्व ही कर्ण ने पृथ्वी पर दिग्विजय प्राप्त की तथा दुर्योधन ने 'वैष्णव यज्ञ' किया। अधीनस्थ राजाओं के कर से सोने का हल बनवाकर उससे यज्ञ-मंडप की भूमि जोती गयी।
- दुर्योधन यद्यपि राजसूय यज्ञ करना चाहता था, किंतु उसी के कुल के युधिष्ठिर ने यह यज्ञ कर रखा था, अत: उसके जीवित रहते राजसूय यज्ञ करना संभव नहीं था, ऐसी ब्राह्मणों की व्यवस्था थी।
- वैष्णव यज्ञ के उपरांत कर्ण ने अर्जुन को मार डालने की शपथ ली और कहा कि- "वह जब तक अर्जुन को नहीं मारेगा, तब तक किसी से पैर नहीं धुलवायेगा, केवल जल से उत्पन्न पदार्थ नहीं खायेगा, किसी पर क्रूरता नहीं करेगा तथा कुछ भी मांगने पर मना नहीं करेगा।" गुप्तचरों के माध्यम से यह समाचार पांडवों तक भी पहुँच चुका था।
- इन सब घटनाओं के मध्य ही एक दिन द्वैतवन के हिंसक पशुओं ने युधिष्ठिर से स्वप्न में आकर प्रार्थना की कि पांडवगण अपना आवास स्थान बदल लें, क्योंकि द्वैतवन में पशुओं की संख्या अत्यंत न्यून हो गयी है। युधिष्ठिर ने भी द्वैतवन का त्याग कर पांडवों, द्रौपदी तथा शेष साथियों सहित काम्यकवन में स्थित तृणबिन्दु नामक सरोवर के लिए प्रस्थान किया।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
महाभारत शब्दकोश |लेखक: एस. पी. परमहंस |प्रकाशक: दिल्ली पुस्तक सदन, दिल्ली |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 52 |
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