तुम सुणौ दयाल म्हाँरी अरजी -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

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भगवन्


राग दरबारी


तुम सुणौ दयाल म्हाँरी अरजी ।।टेक।।
भवसागर में बही जात हूँ, काढ़ो तो थाँरी मरजी ।
यौ[1] संसार सगो नहिं कोई, साँचा सगा रघुबरजी ।
मात पिता औ कुटम कबीलो, सब मतलब के गरजी ।
मीराँ की प्रभु अरजी सुण लो, चरण लगावो थाँरी मरजी ।।130।।[2]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. प्रेम
  2. सुणौ = सुनो। दयाल = कृपालु भगवन्। काढो = निकालो, पार करो। मरजी = खुशी, इच्छा। यौं = इस। कुटम कबीलो = कुटुम्ब के लोग ( देखो - पद 126 )। मतलब = दुनियादारी का स्वार्थ। गरजी = स्वार्थी। थाँरी = तुम्हारी, अपनी।

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