तुम भली निवाही प्रीति, कमल नयन मन मोहन।
तब कैसै अति प्रेम सौ, हमैं खिलाई फाग।
अब चेरी के कारनै, कियौ निमिष मै त्याग।।
हम तौ सब गुन आगरी, कुबिजा कूबर बाढ़ि।
कहौ तौ हमहूँ लै चलै, पाछै कूबर काढ़ि।।
जौ पै तुम्हरी रीझ है, चेरिनि सो अति नेहु।
दृग द्युति दरस दिखाइ कै, हम चेरी करि लेहु।।
बड़ी बड़ाई रावरी, बाढ़ी गोकुल गाँव।
सब व्रज बनितनि ढूँढि कै धरयौ चिरियानौ नावँ।।
अबहूँ चेरी परिहरौ, राजन स्वामी मीत।
या चेरी के कारनै, ‘सूर’ चलै व्रज गीत।। 3155।।