तुम जानति राधा है छोटी।
चतुराई अँग अँग भरी है, पूरनज्ञान, न बुधि की मोटी।।
हमसौ सदा दुराव कियौ इहिं, बात कहै मुख चोटी पोटी।
कबहुँ स्याम तै नैकु न बिछुरति, किये रहति हमसौ हठ ओटी।।
नंदनँदन याही कै बस है बिबस देखि बेदी छबि चोटी।
'सूरदास' प्रभु वै अति खोटे, यह उनहूँ तै अतिही खोटी।।1901।।