तुम्हरे देस कागद मसि खूटी।
भूख प्यास अरु नींद गई सब, बिरह लयौ तन लूटी।।
दादुर मोर पपीहा बोले, अवधि भई सब झूठी।
पाछै आइ तुम कहा करौगे, जब तन जैहै छूटी।।
राधा कहति सँदेस स्याम सौ, भई प्रीति की टूटी।
'सूरदास' प्रभु तुम्हरे मिलन बिनु, सखी करति है कूटी।। 4248।।