डफ बाजन लागे हेली -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग आसावरी


डफ बाजन लागे हेली।
चलहु चलहु जैयै तहँ री, जहँ खेलत स्याम सहेली।।
जहँ घन सुंदर साँवरौ, नहिं मिस देखन दाँउ।
ये गुरुजन बैरी भए, कीजै कौन उपाउ।।
आवहु बछरा मेलियै, बन कौ देहि विडारि।
वै दैहै हमको पठै, देखै रूप निहारि।।
औजत गागरि ढारियै, जमुना जल कै काज।
इहि मिस बाहिर निकसि कै, जाइ मिलै ब्रजराज।।
राग रंग रँगि मँगि रह्यौ नंदराइ दरबार।
गावतिं सकल गुवारिनी, नाचत सकल गुबार।।
घरी घरी आनंद करि जीवन जानि असार।
खाइ खेलि हँसि लीजियै, फाग बड़ौ त्यौहार।।
मुरली मुकुट बिराजही, कटि पट राजत पीत।
'सूरज' प्रभु आनंद सौ, गावत होरी गीत।।2904।।

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