राधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ पृ. 103

श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ

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श्रीठाकुरजी क शयन-झाँकी

नंदालय में पौढि कैं उठैं, तब झरोखा सौं झाँकि कैं-
ठाकुरजी- हैं? आज कहा सरद पूर्णिमा है?
(श्लोक)

शरज्ज्योत्स्नातुल्यं कथमपि परो नास्ति समय-
स्त्रिलोक्यामाक्रीडं क्वचिदपि न वृन्दावनसमम्।
न काप्यम्भोजाक्षी व्रजयुवतिकल्पेति विमृशन्
मनो मे सोत्कण्ठं मुहुरनि रासोत्सवरसे ।।

अर्थ- अहा! सरद-पूर्णिमा की रात्रि के समान कोई उत्तम समय नहीं और बृंदाबन के समान कोई रमणीक क्रीड़ा करिवे जोग्य स्थान नहीं एवं ब्रजजुबतिन के समान कोई कमल-नयनी भामिनी नहीं, यातैं ऐसौ देस-काल-पात्र पाय मेरे मन में बारं-बारं उत्कंठा होय है कि मैं रासोत्सव करूँ।
(दोहा)

प्राची दिसि पूरन कला उदित भयौ अब चंद।
किरन सुसीतल सुखद अति करत ताप सब मंद।।

अर्थ- अहा, आज उडुराज हू पूर्ण कला ते उदय है कैं पूरब दिसा रूप जुबती के मुख कूँ अरुण करतौ भयौ जन-समूह के ताप कूँ दूर करि रह्यौ है। वाने अपने प्रकास ते कुमुदिनीन कूँ जैसैं विकसित करी हैं, वैसे ही मैं हू जिन ब्रजकुमारीन कूँ पहले बर दे चुक्यौ हूँ, उनकौ ब्रत सुफल करिवे कूँ बुलाय कैं रासक्रीड़ा करूँ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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क्रमांक विषय का नाम पृष्ठ संख्या
1. श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला 1
2. श्रीसाँझी-लीला 27
3. श्रीकृष्ण-प्रवचन-गोपी-प्रेम 48
4. श्रीगोपदेवी-लीला 51
5. श्रीरास-लीला 90
6. श्रीठाकुरजी की शयन झाँकी 103
7. श्रीरासपञ्चाध्यायी-लीला 114
8. श्रीप्रेम-सम्पुट-लीला 222
9. श्रीव्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला 254
10. श्रीसिद्धेश्वरी-लीला 259
11. श्रीप्रेम-परीक्षा-लीला 277
12. श्रीप्रेमाश्रु-प्रशंसा-लीला 284
13. श्रीचंद्रावली-लीला 289
14. श्रीरज-रसाल-लीला 304
15. प्रेमाधीनता-रहस्य (श्रीकृष्ण प्रवचन) 318
16. श्रीकेवट लीला (नौका-विहार) 323
17. श्रीपावस-विहार-लीला 346
18. अंतिम पृष्ठ 369

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