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श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ
श्रीठाकुरजी क शयन-झाँकीनंदालय में पौढि कैं उठैं, तब झरोखा सौं झाँकि कैं-
अर्थ- अहा! सरद-पूर्णिमा की रात्रि के समान कोई उत्तम समय नहीं और बृंदाबन के समान कोई रमणीक क्रीड़ा करिवे जोग्य स्थान नहीं एवं ब्रजजुबतिन के समान कोई कमल-नयनी भामिनी नहीं, यातैं ऐसौ देस-काल-पात्र पाय मेरे मन में बारं-बारं उत्कंठा होय है कि मैं रासोत्सव करूँ।
अर्थ- अहा, आज उडुराज हू पूर्ण कला ते उदय है कैं पूरब दिसा रूप जुबती के मुख कूँ अरुण करतौ भयौ जन-समूह के ताप कूँ दूर करि रह्यौ है। वाने अपने प्रकास ते कुमुदिनीन कूँ जैसैं विकसित करी हैं, वैसे ही मैं हू जिन ब्रजकुमारीन कूँ पहले बर दे चुक्यौ हूँ, उनकौ ब्रत सुफल करिवे कूँ बुलाय कैं रासक्रीड़ा करूँ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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