झूलत सघन कुंज पिय-प्यारी -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

श्रीराधा माधव लीला माधुरी

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राग ईमन - ताल त्रिमाल


झूलत सघन कुंज पिय-प्यारी।
घन गरजत, मृदु दामिनि दमकत, रिमझिम बरसत बारी।
भींजत अंबर पीत, अलौकिक नील सुरंगी सारी।
मद भर मोर-मोरनी निरतत, कूजत कोकिल सारी॥
गावत मधुरे सुर मल्हार मिलि सखिजन अरु पिय-प्यारी।
झौंटे देय झुलावत सखि ललितादिक बारी-बारी॥
चितवत स्यामा-स्याम परस्पर, नित नव रस विस्तारी।
उमडि रह्यो आनंद सरस निधि, सबहि जात बलिहारी॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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