झुक आई बदरिया सावन की -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

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राग मलार





झुक[1] आई बदरिया सावन की, सावन की मन भावन की ।। टेक ।।
सावन में उमँग्यो मेरो मनवा, भनक सुनी हरि आवन की ।
उमड़ घुमड़ चहुँ दिस से आयो,दामण दमक झर लावन की ।
नन्ही नन्ही बूँदन मेहा बरसै, सीतल पवन सोहावन की ।
मीराँ के प्रभु गिरधर नागर, आनंद मंगल गावन की ।।144।।[2]



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. बरसै
  2. झुक गई = जल से भरी होने के कारण नीचे तक चली आई।। उँमग्यो = उमंगों से भर आया। भनक = उड़ती हुई ख़बर। दामण = दामिनी, बिजली। दमक = चमक। झर... की = झड़ लगा देने वाली। नन्हीं...बूँदन = झींसियों वा फुहारों के रूप में। मेहा = वर्षा। गावन की = गवाने वाली।

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