ज्ञान जोग अबलनि अहीरि सौ -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग सारंग


ज्ञान जोग अबलनि अहीरि सौ कहत न आवै लाज।
ऊधौ सखा स्याम के कहियत, पठए हौ बेकाज।।
जा लायक जो बात होइ सो, तैसिये तासौ कहिऐ।
बीना नाद सँगीत सुधानिधि, मूढ़हि कहा सुनैऐ।।
हम जानी विचारि पठऐ हौ, सखा अग परवीन।
सुख दैहौ मोहन कहि बतियाँ, करत जोग आधीन।।
मुरली अधर मोर की पाँखै, जिन यह मूरति देखी।
सोऽब कहा जानै निरगुन कौ, भीति चित्र अवरेखी।।
पा लागौ तुम बड़े सयाने, अनबोले ही रहियौ।
सिखए जोग ‘सूर’ के प्रभु के, उनही सौ फिरि कहियौ।।3810।।

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