ज्ञानेश्वरी पृ. 326

श्रीज्ञानेश्वरी -संत ज्ञानेश्वर

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अध्याय-10
विभूति योग


दण्डो दमयतामस्मि नीतिरस्मि जिगीषताम् ।
मौनं चैवास्मि गुह्यानां ज्ञानं ज्ञानवतामहम् ॥38॥

चींटी से लेकर ब्रह्मापर्यन्त सबका नियमन करने वाला जो दण्ड है, समस्त शासकों में वह दण्ड मैं ही हूँ। सार और असार का निर्णय करने वाला और धर्मज्ञान का पक्ष लेने वाला सम्पूर्ण शास्त्रों में जो नीतिशास्त्र है, वह भी मैं ही हूँ। हे सुहृद् अर्जुन! समस्त गूढ़ों में मैं मौन हूँ, क्योंकि मौन रहने वाले के सम्मुख ब्रह्मदेव की भी कुछ नहीं चलती। ज्ञानियों में जो ज्ञान रहता है, वह भी मैं ही हूँ। पर इन विभूतियों का कहाँ तक विवेचन किया जाय! इनका कहीं अवसान ही नहीं है।


यच्चापि सर्वभूतानां बीजं तदहमर्जुन ।
न तदस्ति विना यत्स्यान्मया भूतं चराचरम् ॥39॥
नान्तोऽस्ति मम दिव्यानां विभूतीनां परंतप ।
एष तूद्देशत: प्रोक्तो विभूतेर्विस्तरो मया ॥40॥

हे धनुर्धर! वर्षा के धारों की गणना की जा सकती है अथवा पृथ्वी पर के तृणों और अंकुरों को भी गिना जा सकता है, पर जैसे महासागर के तरंगों को नहीं गिना जा सकता है वैसे ही मेरी प्रमुख विभूतियों की भी कोई सीमा नहीं है। इनमें से जो पाँच-सात मुख्य विभूतियाँ मैंने तुम्हें बतलायी हैं, हे अर्जुन! वे सब तो सिर्फ तुम्हें परिचय कराने के लिये ही हैं। मेरी अवशिष्ट विभूतियों के विस्तार की कोई सीमा ही नहीं है; अत: तुम सुनोगे क्या और मैं बतलाऊँगा क्या? इसलिये अब मैं तुम्हें अपना पूरा मर्म ही बतला देता हूँ। इन जीवरूपी अंकुरों में जिस बीज का विस्तार होता है, वह बीज मैं ही हूँ, अत: किसी को कभी छोटा अथवा बड़ा नहीं कहना चाहिये, ऊँच-नीच का भेदभाव त्याग देना चाहिये और यह भली-भाँति समझ लेना चाहिये कि जितनी वस्तुएँ हैं, वे सब मेरी ही विभूति हैं। तो भी सुनो, मैं अब तुम्हें एक साधारण चिह्न बतला देता हूँ, हे अर्जुन, उसी चिह्न के माध्यम से तुम मेरी विभूतियों को जान सकोगे।[1]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. (300-306)

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क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
पहला अर्जुन विषाद योग 1
दूसरा सांख्य योग 28
तीसरा कर्म योग 72
चौथा ज्ञान कर्म संन्यास योग 99
पाँचवाँ कर्म संन्यास योग 124
छठा आत्म-संयम योग 144
सातवाँ ज्ञान-विज्ञान योग 189
आठवाँ अक्षर ब्रह्म योग 215
नवाँ राज विद्याराज गुह्य योग 242
दसवाँ विभूति योग 296
ग्यारहवाँ विश्व रूप दर्शन योग 330
बारहवाँ भक्ति योग 400
तेरहवाँ क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ विभाग योग 422
चौदहवाँ गुणत्रय विभाग योग 515
पंद्रहवाँ पुरुषोत्तम योग 552
सोलहवाँ दैवासुर सम्पद्वि भाग योग 604
सत्रहवाँ श्रद्धात्रय विभाग योग 646
अठारहवाँ मोक्ष संन्यास योग 681

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