ज्ञानेश्वरी पृ. 319

श्रीज्ञानेश्वरी -संत ज्ञानेश्वर

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अध्याय-10
विभूति योग


आदित्यानामहं विष्णुर्ज्योतिषां रविरंशुमान् ।
मरीचिर्मरूतामस्मि नक्षत्राणामहं शशी ॥21॥

इतना कहकर कृपालु श्रीकृष्ण ने फिर कहा-“द्वादश आदित्यों में विष्णु मेरी प्रमुख विभूति हैं और प्रकाशमान पदार्थों में मैं रश्मियुक्त सूर्य हूँ। श्रीशांर्गी ने कहा कि उनचास मरुद्गणों में मैं ही मरीचि हूँ और तारागणों में मैं चन्द्रमा हूँ।[1]


वेदानां सामवेदोऽस्मि देवानामस्मि वासव: ।
इन्द्रियाणां मनश्चास्मि भूतानामस्मि चेतना ॥22॥

गोविन्द ने कहा कि मैं वेदों में सामवेद हूँ, देवताओं में मरुद्बन्धु महेन्द्र हूँ, इन्द्रियों में ग्यारहवीं इन्द्रिय मन हूँ और प्राणिमात्र में जो स्वाभाविक चेतनाशक्ति है, वह सब मैं ही हूँ।[2]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. (221-222)
  2. (223-224)

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क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
पहला अर्जुन विषाद योग 1
दूसरा सांख्य योग 28
तीसरा कर्म योग 72
चौथा ज्ञान कर्म संन्यास योग 99
पाँचवाँ कर्म संन्यास योग 124
छठा आत्म-संयम योग 144
सातवाँ ज्ञान-विज्ञान योग 189
आठवाँ अक्षर ब्रह्म योग 215
नवाँ राज विद्याराज गुह्य योग 242
दसवाँ विभूति योग 296
ग्यारहवाँ विश्व रूप दर्शन योग 330
बारहवाँ भक्ति योग 400
तेरहवाँ क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ विभाग योग 422
चौदहवाँ गुणत्रय विभाग योग 515
पंद्रहवाँ पुरुषोत्तम योग 552
सोलहवाँ दैवासुर सम्पद्वि भाग योग 604
सत्रहवाँ श्रद्धात्रय विभाग योग 646
अठारहवाँ मोक्ष संन्यास योग 681

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