ज्ञानेश्वरी पृ. 298

श्रीज्ञानेश्वरी -संत ज्ञानेश्वर

Prev.png

अध्याय-10
विभूति योग

तृतीय अध्याय में कर्म की महिमा का विवचेन किया गया है और चतुर्थ अध्याय में उन्हीं कर्मों का ज्ञान के साथ प्रतिपादन किया गया है। पंचम अध्याय में योग तत्त्व का महत्त्व दिखलाया गया है और षष्ठ अध्याय में वह योग तत्त्व और अधिक स्पष्ट किया गया है। आसनों से आरम्भ करके अन्त की ब्रह्मैक्य वाली स्थिति तक की समस्त बातें बहुत ही साफ-साफ बतलायी गयी हैं। इसी प्रकार इस अध्याय में योगह्य स्थिति क्या है और योगभ्रष्टों को कौन-सी गति प्राप्त होती है, इसका भी प्रतिपादन किया गया है। इसके बाद सप्तम अध्याय में सर्वप्रथम माया के स्वरूप इत्यादि का विवेचन किया गया है और उन चार प्रकार के भक्तों का वर्णन है जो ईश्वर की उपासना या भजन करते हें। इसके उपरान्त अष्टम अध्याय में सात प्रश्नों की व्याख्या की गयी है और मरने के समय लोगों की कैसी बुद्धि रहती है, इस बात का विचार अध्याय के अन्त में किया गया है। अपार शब्द ब्रह्म माने जाने-वाले वेदों मे जो कुछ तत्त्व-ज्ञान मिलता है, वही सब एक लाख श्लोकों वाले महाभारत में भी मिलता है और पूरे महाभारत में जो ज्ञान भरा हुआ है, वह सब कृष्णार्जुन संवाद में मिलता है और श्रीकृष्णार्जुन संवाद के सात सौ श्लोकों में जो कुछ तत्त्व है, वह सब गीता के सिर्फ नवें अध्याय में संग्रहीत है। उसी नवें अध्याय का अर्थ स्पष्ट करने में मैं एकदम घबरा गया था। फिर मैं व्यर्थ घमण्ड क्यों करूँ?

गुड़ और शक्कर दोनों एक ही इक्षु रस से बने हुए होते हैं; पर फिर भी उनकी मिठास भिन्न-भिन्न होती है। इसी प्रकार यद्यपि ये सभी अध्याय गीता के ही हैं, पर फिर भी इनमें से कुछ अध्याय ब्रह्मतत्त्व का प्रतिपादन करते हैं, कुछ अध्याय सिर्फ थोड़ा-बहुत सुझाव देकर रह जाते हैं और कुछ अध्यायों के सम्बन्ध में यह जान पड़ता है कि वे अपने ज्ञान के गुण के साथ ब्रह्म में मिल गये हैं। गीता के ये सब अध्याय इसी प्रकार के हैं। परन्तु नवें अध्याय की महिमा वर्णनातीत है। यह एकमात्र गुरुदेव की ही सामर्थ्य का फल था कि मैं उसका वर्णन कर सका। किसी (वसिष्ठ से अभिप्राय है) का अंगोछा सूर्य की भाँति चमकने लगा, किसी (विश्वामित्र से अभिप्राय है) ने इस सृष्टि के टक्कर की एक दूसरी सृष्टि ही बना डाली, किसी (भगवान् श्रीराम से अभिप्राय है) ने पत्थरों का पुल बनाकर अपनी सेना को पैदल ही समुद्र के पार पहुँचाया, किसी (हनुमान जी से अभिप्राय है) ने सूर्य को पकड़ लिया, किसी (अगस्त्य से अभिप्राय है) ने अपने एक चुल्लू में ही सारा समुद्र भर लिया।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

श्रीज्ञानेश्वरी -संत ज्ञानेश्वर
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
पहला अर्जुन विषाद योग 1
दूसरा सांख्य योग 28
तीसरा कर्म योग 72
चौथा ज्ञान कर्म संन्यास योग 99
पाँचवाँ कर्म संन्यास योग 124
छठा आत्म-संयम योग 144
सातवाँ ज्ञान-विज्ञान योग 189
आठवाँ अक्षर ब्रह्म योग 215
नवाँ राज विद्याराज गुह्य योग 242
दसवाँ विभूति योग 296
ग्यारहवाँ विश्व रूप दर्शन योग 330
बारहवाँ भक्ति योग 400
तेरहवाँ क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ विभाग योग 422
चौदहवाँ गुणत्रय विभाग योग 515
पंद्रहवाँ पुरुषोत्तम योग 552
सोलहवाँ दैवासुर सम्पद्वि भाग योग 604
सत्रहवाँ श्रद्धात्रय विभाग योग 646
अठारहवाँ मोक्ष संन्यास योग 681

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः