श्रीज्ञानेश्वरी -संत ज्ञानेश्वर
अध्याय-8
अक्षरब्रह्म योग
उस समय शरीर के भीतर तो अग्नि की ज्योति का प्रकाश रहना चाहिये तथा बाहर शुक्ल पक्ष, दिन और उत्तरायण के छः महीनों में से कोई महीना होना चाहिये; और इस प्रकार समस्त सुयोग मिलने चाहिये। ऐसे सुयोग में जो ब्रह्मविद् शरीर का परित्याग करते हैं, वे ब्रह्मस्वरूप में मिल जाते हैं। हे धनुर्धर! याद रखो, इस योग की इतनी अधिक महत्ता है और यही मोक्ष तक पहुँचने का सुगम मार्ग है। इस मार्ग का प्रथम सोपान शरीर के अन्दर स्थित अग्नि, द्वितीय सोपान उस अग्नि की ज्योति, तृतीय सोपान दिन का समय, चतुर्थ सोपान शुक्ल पक्ष और फिर पंचम सोपान उत्तरायण के छः मासों में से कोई एक मास है। इसी पंच सोपान वाले मार्ग से ही योगी लोग सायुज्य सिद्धि सदन में पहुँचते हैं। इसीलिये इन्हें शरीर के विसर्जन का उत्तम काल जानो! इसी को अर्चिरादि अर्थात् सूर्य की किरणों वाला मार्ग भी कहते हैं। अब मैं तुम्हें शरीर छोड़ने के लिये अयोग्य समय कौन-सा है, इसके विषय में भी बतला देता हूँ, ध्यानपूर्वक सुनो।[1] |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ (220-225)
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