ज्ञानेश्वरी पृ. 234

श्रीज्ञानेश्वरी -संत ज्ञानेश्वर

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अध्याय-8
अक्षरब्रह्म योग


यत्र काले त्वनावृत्तिमावृत्तिं चैव योगिन: ।
प्रयाता यान्ति तं कालं वक्ष्यामि भरतर्षभ ॥23॥

शरीर परित्याग करते समय योगी व्यक्ति मेरे जिस स्वरूप में मिल जाते हैं, वह स्वरूप और भी एक प्रकार से सरलता से जाना जा सकता है। यदि कभी अचानक शरीर का परित्याग हो जाय अथवा असमय में शरीर-त्याग हो जाय, तो फिर शरीर धारण करना अत्यावश्यक होता है, परन्तु यदि शास्त्रोक्त शुद्ध समय में शरीर छोड़ दे, तो शरीर छोड़ते ही वह ब्रह्मरूप हो जाता है। पर यदि असमय में शरीर का त्याग हो तो उसे पुनः जन्म और मृत्यु के चक्कर में पड़ना पड़ता है। इसलिये सायुज्य (परब्रह्म के साथ एकरूप होना) और पुनर्जन्म-ये दोनों ही बातें देह-त्याग के समय पर ही निर्भर करती है। इसीलिये इस सन्दर्भ में मैं तुम्हें देह-त्याग के समय का तत्त्व बतला देना चाहता हूँ। हे सुभट! सुनो। जिस समय मृत्युरूपी तन्द्रा आती है, उस समय पंचमहाभूत अपने-अपने मार्ग से निकलकर चल देते हैं। अतः जब प्रयाणकाल आवे, तब बुद्धि भ्रान्त न हो, स्मरण अन्धा न हो जाय और देह के साथ-ही-साथ मन भी नष्ट न हो जाय, ब्रह्मस्वरूप के अनुभव का कवच मिल जाय तथा सम्पूर्ण प्राणसमुदाय मृत्यु के समय प्रफुल्लित दिखायी दे और इसी प्रकार अन्तरिन्द्रियों का समूह भी ठीक अवस्था में रहे और पूरा-पूरा काम दे तथा प्राणों के प्रयाण के समय तक ज्यों-का-त्यों बना रहे, इन सब बातों के लिये यह परमावश्यक है कि शरीर के भीतर की अग्नि (उष्णता) अन्त तक बनी रहे। देखो, यदि वायु के वेग से अथवा पानी के थपेड़े से दीपक की ज्योति बुझ जाय और उसकी दीपकता नष्ट हो जाय तो फिर यदि अपनी दृष्टि अच्छी भी हो तो भी भला उसे क्या दिखलायी पड़ सकता है?

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
पहला अर्जुन विषाद योग 1
दूसरा सांख्य योग 28
तीसरा कर्म योग 72
चौथा ज्ञान कर्म संन्यास योग 99
पाँचवाँ कर्म संन्यास योग 124
छठा आत्म-संयम योग 144
सातवाँ ज्ञान-विज्ञान योग 189
आठवाँ अक्षर ब्रह्म योग 215
नवाँ राज विद्याराज गुह्य योग 242
दसवाँ विभूति योग 296
ग्यारहवाँ विश्व रूप दर्शन योग 330
बारहवाँ भक्ति योग 400
तेरहवाँ क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ विभाग योग 422
चौदहवाँ गुणत्रय विभाग योग 515
पंद्रहवाँ पुरुषोत्तम योग 552
सोलहवाँ दैवासुर सम्पद्वि भाग योग 604
सत्रहवाँ श्रद्धात्रय विभाग योग 646
अठारहवाँ मोक्ष संन्यास योग 681

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