श्रीज्ञानेश्वरी -संत ज्ञानेश्वर
अध्याय-8
अक्षरब्रह्म योग
अर्जुन ने कहा-“अब मेरा पूरा ध्यान आपकी ही बातों की तरफ है। मैंने जो कुछ पूछा है, वह आप मुझे समझावें और यह भी बतलावें कि ब्रह्मकर्म और अध्यात्म क्या है। अधिभूत और अधिदैव का भी आप निरूपण करें। आप इन सब बातों को इस ढंग से बतलावें कि मेरी समझ में अच्छी तरह से आ जाय।[1]
हे देव! आप जिसे अधियज्ञ नाम से पुकारते हैं, वह इस देह में कौन है तथा कैसा है? मैं उसके विषय में जानना चाहता हूँ, पर वह किसी भी तरह मेरे अनुमान की पकड़ में नहीं आता। साथ-ही-साथ हे शांर्गपाणि, मुझे यह भी बतलाइये कि स्वाधीन अन्तःकरण वालों को देहत्याग के समय आपका जो ज्ञान होता है वह किस प्रकार होता है।” देखो कोई सौभाग्यशाली व्यक्ति चिन्तामणि रत्नों से निर्मित भवन में शयन करता है और उस शयनावस्था में ही यदि वह कुछ बड़बड़ाता है, तो उसकी वह बड़बड़ाहट भी कभी बेकार नहीं जाती। इसी प्रकार अर्जुन के मुख से ये सब बातें अभी ठीक से निकलने भी नहीं पायी थीं कि देव ने कहा कि हे अर्जुन! तुमने जो कुछ पूछा है, उसका वर्णन अच्छी तरह सुनो। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ (1-3)
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