श्रीज्ञानेश्वरी -संत ज्ञानेश्वर
अध्याय-1
अर्जुन विषाद योग
यावदेतान्निरिक्षेऽहं योद्धुकामानवस्थितान्। जब तक इन सब युद्ध के लिये आये हुए शूर सैनिकों को मैं अच्छी तरह से देख न लूँ (तब तक रथ को खड़ा कर लेना)। यहाँ सब आये हुए हैं; परंतु इस रणांगण में मुझे किसके साथ लड़ना है, इसका विचार करना जरूरी है। ये कौरव तो बड़े ही जड़बुद्धि एवं बुरे स्वभाव के हैं। अत: सम्भव है कि पराक्रम के बिना भी ये लोग यहाँ युद्ध की अभिलाषा लिये हुए पहुँच आये हों। कौरवों को युद्ध करने की इच्छा तो बहुत है, पर युद्ध के लिये इन लोगों में अपेक्षित धैर्य का सर्वथा अभाव ही है।” महाराज धृतराष्ट्र को अर्जुन की यह बात बताकर संजय ने आगे कहा[1]- संजय उवाच “हे राजन्! सुनिये; ज्यों ही अर्जुन ने ये बातें कहीं त्यों ही श्रीकृष्ण ने रथ को आगे बढ़ा दिया और ले जाकर सेनाओं के मध्य में खड़ा कर दिया।”[2] |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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