श्रीज्ञानेश्वरी -संत ज्ञानेश्वर
अध्याय-1
अर्जुन विषाद योग
अथ व्यवस्थितान्दृष्ट्वा धार्तराष्ट्रान् कपिध्वजः। किन्तु उस सेना में जो परम साहसी शूरवीर महारथी थे, उन्होंने सेना को फिर से सँभाला। वे सब-के-सब बड़ी तत्परता से आगे बढ़े और उन्होंने दुगुने उत्साह से आक्रमण किया। इनके कारण तीनों लोक क्षुब्ध हो उठे। उन धनुर्धर वीरों ने प्रलयकाल के बादलों की भाँति बाणों की लगातार वर्षा की। यह देखकर अर्जुन के मन में सन्तोष हुआ और तब उसने अत्यधिक उत्साह से उस सेना पर दृष्टिपात किया। उस समय कौरवों को युद्ध के लिये तैयार देखकर पाण्डु पुत्र अर्जुन ने भी सहज में अपना गाण्डीव धनुष उठा लिया।[1] अर्जुन उवाच तब अर्जुन ने हृषीकेश भगवान् श्रीकृष्ण से कहा-“हे देव! अब आप रथ को जल्दी से आगे बढ़ाकर दोनों सेनाओं के बीच में खड़ा कर दें।[2] |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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