ज्ञानेश्वरी पृ. 110

श्रीज्ञानेश्वरी -संत ज्ञानेश्वर

Prev.png

अध्याय-4
ज्ञानकर्म संन्यास योग


निराशीर्यतचित्तात्मा त्यक्तसर्वपरिग्रह: ।
शारीरं केवलं कर्म कुर्वतन्नाप्नोपि किल्बिषम् ॥21॥
यदृच्छालाभसंतुष्टो द्वन्द्वातीतो विमत्सर: ।
सम: सिद्धावसिद्धौ च कृत्वापि न निबध्यते ॥22॥

वह आत्मानंद की माधुरी का रसास्वादन दिनोंदिन बढ़ती रहने वाली रुचि के कारण अधिक लेता है। वह आशा का परित्याग कर देता है और उसे अहंकार के साथ निछावर करके छोड़ देता है। इसीलिये जिस समय उसे जो कुछ समयानुसार मिल जाता है, उसी पर वह सन्तोष करता है और ‘यह मेरा है और वह पराया है’-इस प्रकार की बात भी उसके पास नहीं आने पाती। वह मनुष्य दृष्टि से जो भी देखता है, वह दृश्य स्वयं बन जाता है और वह जो कुछ सुनता है, वह श्राव्य विषय वह स्वयं बना हुआ होता है। पैर से चलता है, मुँह से कुछ भी बोलता है, इस प्रकार जितने भी क्रिया-कलाप (व्यवहार) उससे होते हैं, वे सब कुछ अंगरूप से वह स्वयं बना हुआ है अर्थात् सम्पूर्ण विश्व उसके लिये आत्मरूप होता है। फिर भला ऐसे मनुष्य के लिये कौन-सा कर्म कब बाधक हो सकता है? जिस द्वैतभाव से मत्सर उत्पन्न होता है, वह द्वैतभाव जिस मनुष्य में रह ही नहीं जाता, उसके विषय में यह कहने की जरूरत ही नहीं रहती कि वह निर्मत्सर है, कारण कि उसके सम्बन्ध में यह बात स्वतः सिद्ध ही होती है। इसीलिये ऐसा मनुष्य सर्वथा मुक्त ही रहता है और इसमें कुछ भी सन्देह नहीं कि वह सब प्रकार के कर्म करने पर भी अकर्मा ही रहता है। वह देखने में तो सगुण जान पड़ता है, पर वास्तव में निगुर्ण ही रहता है अर्थात् गुणातीत रहता है, इसमें संशय नहीं है।[1]

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. (108-144)

संबंधित लेख

श्रीज्ञानेश्वरी -संत ज्ञानेश्वर
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
पहला अर्जुन विषाद योग 1
दूसरा सांख्य योग 28
तीसरा कर्म योग 72
चौथा ज्ञान कर्म संन्यास योग 99
पाँचवाँ कर्म संन्यास योग 124
छठा आत्म-संयम योग 144
सातवाँ ज्ञान-विज्ञान योग 189
आठवाँ अक्षर ब्रह्म योग 215
नवाँ राज विद्याराज गुह्य योग 242
दसवाँ विभूति योग 296
ग्यारहवाँ विश्व रूप दर्शन योग 330
बारहवाँ भक्ति योग 400
तेरहवाँ क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ विभाग योग 422
चौदहवाँ गुणत्रय विभाग योग 515
पंद्रहवाँ पुरुषोत्तम योग 552
सोलहवाँ दैवासुर सम्पद्वि भाग योग 604
सत्रहवाँ श्रद्धात्रय विभाग योग 646
अठारहवाँ मोक्ष संन्यास योग 681

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः