जौ हम भले बुरे तौ तेरे ?
तुम्हैं हमारी लाल-बड़ाई, बिनती सुनि प्रभु मेरे।
सब तजि तुम सरनागत आयौ, दृढ़ करि चरन गहे रे।
तुम प्रताप-बल बदत न काहूँ, मिडर भए घर-चेरे।
और देव सब रंक-भिखारी, त्यागे बहुत अनेरे।
सूरदास प्रभु तुम्हरी कृपा तै, पाए सुख जु धनेरे।।170।।
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