जौ पै मोहिं कान्ह जिय भावै।
तौ सुनि मधुप जसोदानंदन काहै कौ गोकुल आवै।।
किन प्रभु गोपवेष ब्रज धरिकै, कब बन रास बनावै।
जौ पूरबिलौ प्रेम निरंतर, अतर कौन बढ़ावै।।
यह कछु और कह्यौ चाहत ते, और कछू बनि आवै।
सूर कौन यह प्रकट करै अब, भले जु उनकौ भावै।। 193 ।।