जौ तुमहीं हौ सबके राजा।
तौ बैठौ सिंहासन चढ़ि कै, चँवर, छत्र सिर भ्राजा।।
मोर-मुटुक मुरली पीतांबर, छाड़ौ नटवर-साजा।
बेनु, विषान, संख क्यौं पूरत, बाजै नौबत बाजा।।
यह जु सुनैं हमहूँ सुख पावैं, संग करैं कछु काजा।
सूर स्याम ऐसी बातैं सुनि, हमकौं आवति लाजा।।1546।।