जो मेरे भक्तनि दुखदाई -सूरदास

सूरसागर

सप्तम स्कन्ध

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राग कान्हरौ



जो मेरे भक्तनि दुखदाई।
सो मेर इहिं लोक बसौ जनि, त्रिभुवन छाँडि़ अनत कहुँ जाई।
सिव-विरंच-नारद मुनि देखत, तिनहुँ न मोकौं सुरत दिवाई।
बालक अबल, अजान रहयौ वह, दिन-दिन देत त्रास अधिकाई।
खंभ फारि, गल गाजि मत्त बल ,क्रोधमान छवि बरनि न आई ।
नैन अरुन, बिकराल दसन अति, नख सों हृदय बिदारयौ जाई।
कर जोरे प्रहलाद जो विनवै , विनय सुनौ असरन- सरनाई।
अपनी रिस निवारि प्रभु, पितु मम अपराधी , सो परम पति पाई।
दीनदयाल , कृपानिधि , नरहरि, अपनी जानि हियैं जियौ लाई।
सूरदास प्रभु पूरन ठाकुर, कहौ, समल मै हूँ नियराई।।4।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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