जोग भलौ जौ मोहन पावै -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग केदारौ


जोग भलौ जौ मोहन पावै।
कहि सति भाव कपट तजि ऊधौ, तो निहचै चित लावै।।
करै तपस्या बिधि संजोगी, एक ध्यान धरि ध्यावै।
मन करि हाथ आपनै राखै, चित न कहूँ डुलावै।।
एकै ‘सूर’ कठिन लागत है, नैना जौ ढँग आवै।
है रस रसे साँवरे हरि के, सो रस जौ बिसरावै।।3796।।

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