जोगी म्‍हाँने, दरस दियाँ सुख होइ -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

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विरह निवेदन


जोगी म्‍हाँने, दरस दियाँ सुख होइ ।
ना‍तरि दुख जग माहिं जीबड़ो, निस दिन झूरै तोइ ।
दरद दिवानी भई बावरी, डोली सबही देस ।
मीराँ दासी भई है पंडर, पलटया काला केस ।।97।।[1]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. म्हाँने = हमको, मुझे। दियाँ = देने से। होइ = होगा। नातरि = नहीं तो। झूरै = दुःख से घबरा जाता है, शोकाकुल हो रहा है। तोइ = तुझे, तेरे लिए। डोली = घूमती फिरी। पंडर = सफेद में। पलट्या = बदल गए।

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