मीराँबाई की पदावली
विरह निवेदन राग सावन
जोगिया[1] ने कहज्यो जी आदेस ।।टेक।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ जोगिया ने कहियो रे आदेस आऊँगी मैं नाहिं रहूँ रे, कर जटाधारी भेस ।
चीर को फाड़ूँ कंथा पहिरूँ, लेऊँगी उपदेस ।
गिणते गिणते घिस गई रे, मेरी उँगलियों की रेख ।
मुद्रा माला भेपलूँ रे, खघड़ लेऊँ हाथ ।
जोगिन होय जग ढूँढसूं रे, रावलिया के साथ ।
प्राण हमारा वहाँ बसत है, यहाँ तो ख़ाली खोड़ ।
मात पिता परिवार सूँ रे, रही तिनका तोड़ ।
पाँच पचीसो बस किये, मेरा पल्ला न पकड़ै कोय ।
मीरा व्याकुल विरहनी, कोइ आय मिलावै मोय । - ↑ ने = को। कहज्यो = कह देना। आदेस = निवेदन, संदेश। चतर सुजाण = चतुर सुजान। ध्यावै = ध्यान धरते हैं। नाह = नहीं। म्हारा = अपने। प्रतिपाल = अनुग्रह। मुदरा = योगियों का मुद्रा नामक कर्ण भूषण। मेखला = योगियों की कर्धनी। बाला = बाल्हा बल्लभ, प्यारे। खप्पर = भिक्षापात्र। जुग = जग, संसार भर। ढूंझसूँ = खोजूँगी। रावलियारी = अपने राजा के। कौल = करार। गिणता... रेख = इतनी बार अवधि के दिन गिनने पड़े कि अँचुलियों की रेखायें तक मिटने लगीं वा मिट गईं। पीली पड़ी = मुरझा गई। वाली = नवीन, नई। पेस = पेश, समर्पण।
विशेष - विरहिणी द्वारा आने की अवधि गिनने के विषय में देखिये 'दिन औधि के कैसे गनौ सजनी, अँगुरीन के पोरन छाले परे'- ठाकुर।
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